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धरतिन माता मंदिर परिसर सेमरहा धाम निपनिया में शिव महापुराण कथा के पंचम दिवस सती चरित्र एवम शिवपार्वती जन्मोत्सव का हुआ वर्णन

Neemuchhulchal ✍️✍️ (रिपोर्टर हुकुम सिंह) भारत देश की नारियां अपने पति का अपमान नहीं करती है सहन नौरोजाबाद रेलवे स्टेशन से 2 किलोमीटर दूरी स्थित ग्राम पंचायत निपानिया अंतर्गत मां बिरासिनी माता सेमरहा धाम निपनिया में में चल रही शिव महापुराण कथा के पंचम दिन कथा व्यास प, कुलदीप शास्त्री जी श्रीधाम वृंदावन ने सती चरित्र की कथा सुनाई। कथा सुनकर श्रद्धालु भाव विभोर हो गए। भजनों पर श्रद्धालु खूब निहाल हुए। उन्होंने विस्तार से सती चरित्र की कथा सुनाई। उन्होंने कहा कि पर्वत राज हिमालय की घोर तपस्या के बाद माता जगदम्बा प्रगट हुई और उन्हे बेटी के रुप में उनके घर में अवतरित होने का वरदान दिया। उसके बाद माता पार्वती हिमालय के घर अवतरित हुई। बेटी के बड़े होने पर पर्वतराज को उनकी सादी की चिंता सताने लगी। कहा कि माता पार्वती बचपन से ही बाबा भोलेनाथ की अनन्य भक्त थीं। एक दिन पर्वतराज के घर महर्षि नारद पधारे और उन्होंने भगवान भोलेनाथ के साथ पार्वती के विवाह का संयोग बताया। कहा कि नंदी पर सवार भोलेनाथ जब भूत _पिशाचों के साथ बरात लेकर पंहुचे तो उसे देखकर पर्वतराज और उनके परिजन अचंभित हो गए, लेकिन माता पार्वती ने खुशी से भोलेनाथ को पति के रुप में स्वीकार कर लिया। शिव पार्वती विवाह गीत में श्रोता मंत्रमुग्ध होकर नाच रहे थे।भागवत कथा का प्रत्येक प्रसंग मानव जाति को संदेश देता है। पूर्व जन्म के सद् कर्म के चलते ही कथा सुनने का सुअवसर प्राप्त होता है। कथा का श्रवण जरूर करना चाहिए। कथावाचक जी ने बताया कि माता सती के पिता दक्ष ने एक विशाल यज्ञ किया था और उन्होंने अपने सभी संबंधियों को बुलाया। लेकिन बेटी सती के पति संकर को नहीं बुलाया। जब सती को यह पता चला तो उन्हे बड़ा दुःख हुआ और उन्होंने भगवान शिव से उस यज्ञ में जानें की अनुमति मांगी। लेकिन भगवान शिव ने उन्हें यह कहकर मना कर दिया कि बिना बुलाए कन्ही जाने से इंसान के सम्मान में कमी आती है। लेकिन माता सती नहीं मानी और राजा दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में पंहुच गई। वन्हा पंहुचने पर सती ने अपने पिता सहित सभी को बुरा भला कहा और स्वयं को यज्ञ अग्नि में स्वाहा कर दिया। जब भगवान शिव को ये पता चला तो उन्होंने अपना तीसरा नेत्र खोलकर राजा दक्ष की समस्त नगरी तहस नहस कर दी और सती का शव लेकर घूमते रहे। भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के टुकड़े टुकड़े किए। जन्हा शरीर का टुकड़ा गिरा वन्हा _वन्हा शक्तिपीठ बनी।

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