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मां बिरासिनी मंदिर में कुमार कार्तिकेय एवम गणेश जन्म की कथा का हुआ मनोहारी प्रसंग

Neemuchhulchal ✍️✍️ (रिपोर्टर हुकुम सिंह) उमरिया जिले अन्तर्गत नौरोजाबाद रेल्वे स्टेशन से महज दो किलोमीटर दूर कल्चुरी प्रतिमा के रुप प्रतिस्थापित मां बिरासिनी धाम सेमरहा (निपनिया) में इन दिनों शिव महापुराण कथा की ज्ञान गंगा बह रही है जिसको श्रवण करने हजारों की संख्या में श्रद्धालु पंहुच रहे हैं कथावाचक पूज्य पं. कुलदीप शास्त्री जी वृंदावन धाम द्वारा आज़ कुमार कार्तिकेय के जन्म की अति विस्मयकारी कथा सुनाई।कुमार कार्तिकेय के जन्म की अति विस्मयकारी कथा भगवान शिव की जब बात आती है तो शिव परिवार का उल्लेख भी होता है और फिर उल्लेख होता है शिव और शक्ति के पुत्रों का। शिव पुत्र और प्रथम पूज्य गणेशजी का तो कई-कई बार उल्लेख हो जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि शिव और माता पर्वती के प्रथम पुत्र गणेशजी नहीं बल्कि कुमार कार्तिकेय हैं। मयूर की सवारी करने वाले, शक्तिशाली कुमार कार्तिकेय के जन्म की कथा अति रोचक है। भगवान शिव और माता पार्वती स्कंद पुराण के अनुसार भगवान शिव ने अधर्मी दैत्य तारकासुर को एक वरदान दिया जिसके कारण वह अत्यंत शक्तिशाली हो गया था। वरदान यह था कि उसका अंत केवल और केवल शिवपुत्र के हाथों ही होगा। वरदान पाने के बाद वह तीनों लोकों में हाहाकार मचाने लगाशिव और शक्ति पुनः एक हुए इस तरह शिव और शक्ति पुनः एक होकर कैलाश पर वास करने लगे। अब यहीं पर शिवपुत्र जोकि तारकासुर का वध करता उसका पूरा प्रसंग आता है। कार्तिकेयजी माता पार्वती और भगवान शिव के जैविक पुत्र नहीं है लेकिन वो शिवजी के अंश अवश्य हैं। कार्तिकेय का जन्म कुछ इस तरह हुआ कि शिवजी के तेज से एक प्रकाश पुंज निकला और यह पुंज इतना शक्तिशाली था कि इसे अग्नि, पर्वत, ऋषि-मुनियों की पत्नियां भी संभाल नहीं पा रही थीं। शिवांश का तेज इतना अधिक था कि कोई भी उसे संभाल नहीं सका।जब यह तेज धरती पर पड़ा तो धरती माता से भी इसे संभालना कठिन हो गया, इसके बाद यह तेज पुंज चलता ही रहा और देवी गंगा के जल में तैरने लगा लेकिन देवी गंगा भी उस प्रकाश पुंज को नहीं सहन कर पाईं और उसे सरकंडे के एक वन में त्याग दिया। समय के बीतने के साथ ही शिवांश एक बालक रूप में परिवर्तित हुआ। छह मुख वाले उस बालक का पालन पोषण कृतिकाओं ने किया था, जिसके कारण ही उस बालक का नाम कार्तिकेय पड़ा। शिवजी के तेज से उत्पन्न हुए इस बालक का यानी कार्तिकेयजी का वन में ही पालन पोषण होने लगा। कृतिकाएं एक माता की भांति बालक का ध्यान रखती थीं।उधर माता पार्वती ने भी एक तेजवान बालक कार्तिकेय के बारे में सुना और इस बारे में भगवान शिव को भी बताया। इस पर भगवान शिव ने उन्हें जानकारी दी कि कार्तिकेय उनके ही पुत्र हैं। इसके बाद शिवजी ने अपने गणों को बुलाया और कहा कि ‘तुम उस सरकंडे के वन में जाओ, वहां एक बालक है जो अपनी वीरता का प्रदर्शन कर रहा है, वह हमारा अंश है, हमारा पुत्र है, उसे सम्मान के साथ लेकर आओ।’ शिवजी के आदेश के बाद शिव गण उस वन में पहुंचे और कुमार कार्तिकेय को कृतिकाओं के साथ बड़े सम्मान से शिवजी के सामने ले आए। उस बालक को देखकर कैलाश पर्वत पर आनंद छा गया। वहीं, कार्तिकेयजी के आ जाने के बाद वह समय भी आ गया जब उन्हीं शिवपुत्र के द्वारा तारकासुर का वध होना था। शिवपुत्र कार्तिकेयजी अत्यंत वीर थे और उन्हें तारकासुर का वध भी करना था, ऐसे में सभी देवता उनके नेतृत्व में चल पड़े और तारकासुर पर आक्रमण कर दिया। इस तरह तारकासुर शक्तिशाली कार्तिकेय के सामने एक क्षण भी टिक नहीं सका और शिवपुत्र के हाथों अपने अंत को प्राप्त हुआ। देवताओं के सेनापति तारकासुर का वध करके कार्तिकेयजी ने अपने सामर्थ्य और शक्ति का प्रदर्शन किया था। उन्होंने अपने युद्ध कौशल से सृष्टि को तारकासुर के उत्पात से, उसके भय से मुक्त कराया था। अतः देवराज इंद्र ने त्रिदेवों और सभी देवताओं की सर्वसम्मति से कार्तिकेयजी को देवताओं का सेनापति नियुक्त कर दिया। कुमार कार्तिकेय की दक्षिण भारत में अधिक पूजा होती है। उनके कई नाम हैं लेकिन वे स्कंद एवं भगवान मुरुगन के नाम से अधिक जाने जाते हैं।

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