logo

भागवताचार्य पंडित राजेश राजोरा की सीतामऊ से सावरिया जी की पदयात्रा सम्पन्न हिन्दू एकता, सनातन धर्म को बढ़ावा एवं गौ सेवा का पैगाम देने 150 किलो मीटर की पदयात्रा में महान कथावाचक पंडित राजेश राजोरा का जगह-जगह भव्य स्वागत सत्कार।

सिंगोली:-मध्यप्रदेश -राजस्थान के महान भागवताचार्य पंडित राजेश जी राजोरा जी महाराज गौसेवा .सनातन संस्क्रति औऱ हिन्दू परम्पराओ को सम्रद्ध करने के प्रयास मन मे लेकर उन्होंने सीतामऊ से सावरिया जी की पदयात्रा का निर्णय लिया था। भागवताचार्य श्री राजोरा मध्यप्रदेश स्थित मंदसौर जिले के सीतामऊ से शांति का प्रतीक केशरिया ध्वज लेकर मंदसौर , पिपलिया मंडी, मल्हारगढ़ , नीमच , नयागांव , निम्बाहेड़ा व आवरीमाता होकर कृष्ण जन्माष्ठमी के दिन सावरिया जी मंदिर पहुच भगवान सावरिया जी को केशरिया ध्वज अर्पित किया, श्री राजोरा जी की पदयात्रा का गांव गांव हर शहर चौपाटी पर उनके शिष्यों द्वारा गुरुदेव के चरण वंदन आरती पूजा कर भव्य स्वागत सत्कार किया गया पदयात्रा के दौरान मध्यप्रदेश व राजस्थान की सीमा (जावद) नयागांव पर तो उनके शिष्यों का जमावड़ा लगा । इस दौरान भाजपा के वरिष्ट नेता सुखलाल सेन (तारापुर) विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ता व पूर्व सरपंच पवन कुमार के नेर्तव्य में भागवताचार्य की ढोल धमाके व आतिशबाजी कर अगवानी की । भागवताचार्य ने अपने शिष्यों को आशीर्वाद प्रदान करते हुए बताया कि पदयात्रा से शरीर निरोगी एवं आत्मा पवित्र और तीर्थंकर नाम का पुण्य मिलता है। प्रभु शक्ति एवं जीवदया की परिचायक है। मानव शरीर के लिए जितना ईमानदार है क्या उतना आत्मा के लिए ईमानदार है हमें चिंतन करना होगा। पैदल यात्रा मोक्ष कल्याण के मार्ग की प्रथम सीढ़ी है। पदयात्रा सामाजिक एकता प्रेम भाईचारे सद्भाव का संदेश देती है। श्री राजोरा ने कहा कि जन्म-जन्म का पुण्य संग्रह हो तो तीर्थ दर्शन का अवसर मिलता है। आसक्ति आती है तो परिग्रह हो जाता है। प्राचीनकाल में व्यक्ति की आत्मा भटकती थी। आज कल पंचम में आज आत्मा नहीं इंसान भटक रहा है। शरीर में आत्मा है तब तक प्राण का महत्व होता है। आत्मा बिना मनुष्य मुर्दा होता है चिंतन करना होगा। प्रभु की पड़यात्रा में विश्वास और श्रद्धा है तो रोगी व्यक्ति भी पदयात्रा कर सकता है। श्री राजोरा ने अपनी पदयात्रा के दौरान हर जगह अपने शिष्यों सहित आमजन को गौ सेवा व उसकी रक्षा का संकल्प दिलाते हुए बताया कि *गो सेवा ही मानव जीवन का सबसे बड़ा धर्म* गाय के अंग-अंग में देवताओं का वास होता है, गो धन से बढ़ कर न तो कोई सेवा है न धर्म है। जो गो सेवा में लग जाता है, उसे किसी और परमार्थ करने की जरूरत नहीं होती है। श्री राजोरा नेकहा कि गो के चलने से उडऩे वाली रज से आसुरी शक्तियों का नाश होता है। इसी रज उडऩे के समय को भी शुभ माना जाता है। शास्त्रों में लिखा है कि कामधेनू की उड़ी रज से गेहंू की बनावट तैयार हुई है। उन्होंने कहा कि आज गो की जो दुर्दशा हो रही है, इसके लिए हम सब जिम्मेदार है। प्रत्येक धर्म प्रेमी परिवार को एक गो माता की सेवा करनी चाहिए। विशेष रूप से किसानों को गो पालन में रूचि दिखानी चाहिए। उन्होंने कहा कि श्रीकृष्ण के जीवन काल के प्रसंगों को गाय के बगैर पूरा नहीं किया जा सकता। जब धरती पर दूराचार बढ़ा, सारे देवताओं में त्राही-त्राही मच गई और सभी देवता भगवान विष्णु के पास रक्षा की गुहार लेकर गए, उस समय धरती भी गाय का रूप धारण कर उनके साथ हो गयी थी। भागवताचार्य श्री राजोरा की पदयात्रा कृष्ण जन्मोत्सव (जन्माष्टमी) सावरिया जी के दर्शन कर उन्होंने आमजन के कल्याण सुख शांति की मनोकामना की ।

Top