logo

आत्मा पर चढ़े राग द्वेष मोह माया रुपी धुल को त्याग तप संयमी रुप से हटाये --प पू श्री पराग श्री जी मसा

Neemuchhulchal ✍️✍️ ब्यावर/कुकडेश्वर (मनोज खाबिया की रिपोर्ट ) म्हारों मन साधना मे कद लागसी,म्हारी आत्मा की मैली चादर कद धुलसी उक्त भजन की पंक्ति कहती है कि म्हारो मन साधना मे कद लागसी कभी हमने विचार करा कि हमारे मन को साधना मे कैसे लगावे ये पंक्तियां हमें चेता रही हैं कि हे मानव इस मन तन को साधना से जोड़े जैसे दर्पण में चेहरा साफ देखने के लिए उस पर लगी धुल को कपड़े से साफ करन पर हमारा चेहरा साफ दिखाई देगा उसी प्रकार हमारी आत्मा में रहें राग,द्वेष,छल, कपट,झुट के कषायों रुपी धुल को हटाने पर आत्मा साफ होकर निर्मल बन जायेगी और इसके लिए हमे त्याग, तप, से संयमी जिवन जीकर उक्त धुल रुपी कषायो को हटा कर तन को तपाकर बाहर निकालना पडेगा। तब हमारा मन साधना में लगेगा। उक्त विचार हुकमेश संघ के पटधर आचार्य भंगवत 1008 श्री रामलाल जी मसा की शिष्या प पू श्री पराग श्री जी मसा ने समता भवन ब्यावर में धर्म सभा में उपस्थित श्रावक श्राविका से कहा कि सबसे पहले (मन) चित को शुद्धि मे लगाने से हमारी आत्मा निर्मल होकर तीर जायेगी।मन मे श्रृद्धा होने से धर्म टिकेगा।चित की शुद्धि के लिए शुद्ध प्रतिक्रमण जरुरी है जिससे मन शुद्ध होगा और मन धर्म मे लगेगा।आज हम प्रतिक्रमण टेपरिकार्डर की तरह कर लेते उसे कितना अंदर उतारा उसका चिंतन करना होगा नहीं तो प्रतिक्रमण वापस बाहर आकर ये मन पहले की तरह बन जाता है।कषायों की गहराई को समझें बिना चित की शुद्धि मुश्किल है,आज हम बाहर की पवित्रता को देख रहें परन्तु हमारे अंदर की गंदगी को नही देख पा रहे हैं। उक्त अवसर पर पावन श्रीजी म सा ने कहा इस मनुष्य जन्म मे ही अपने कर्मो को रोक सकते हैं।इस लोक मे अरिहंत प्रभु ही देव हैं है जो हमे तीनो लोकों मे देखने वाले होते हैं। कषाय चार गति मे ले जानो के लिए तैयार रहता है।जीवन मे थोडा सा प्रतिकूल शब्द आते ही भीतर के कषाय जाग्रत हो जाते है।अहंकार के बैठते ही भीतर के कषाए प्रज्वलित हो जाते हैं जो संसार मे ढकेलने का काम करते है।कर्म अणगार बनकर फल देने को तैयार रहता हैं।हमे कर्म के स्वरुप को समझना पडेगा।अनजाने मे कितने प्राणियो को डंड दे बैठते हैं आत्म चिंतन ही मन को स्थिर कर सकता हैं।

Top