(मंजु राठौड़ कि कलम से........) 09 अप्रैल 1965 को गुजरात के रण (कच्छ) में स्थित ‘सरदार पोस्ट’ पर सीआरपीएफ की एक छोटी सी टुकड़ी ने अपने से कई गुना अधिक संख्या वाली हमलावर दुश्मन पाकिस्तानी फौज को हरा कर इतिहास रचा था। अदम्य साहस, वीरता और बलिदान के प्रतीक सीआरपीएफ ‘शौर्य दिवस’ की सभी को बधाई व हमारे वीर शहीदों को नमन्। शोर्य की पराकाष्ठा देखनी हो तो एक भारतीय सैनिक का जीवन चक्र देखिए।।। शोर्य तो हिंदुस्तान के कण कण में बसा है,,,, यह बात चरितार्थ होती हैं, श्री हरदेव राम जी राठौर के सम्पूर्ण जीवन पर। 1937 में जन्मी एक ऐसी शख्सियत, जिसने देश की सरजमीं पर सफलता के ऐसे झंडे गाड़े कि देश आज भी उन्हें सलाम करता है। श्री हरदेव राम जी राठौर, जिनका जन्म 1937 में बावल नाम के एक छोटे से गांव में हुआ। बावल नीमच जिले का एक छोटा सा गांव है,, नीमच जो कि सीआरपीएफ की जन्म स्थली भी है। आपके जन्म से पहले ही आपका परिवार देशभक्ति की कई मिसाले रख चुका था। यह एकमात्र परिवार था जो उस समय भी अंग्रेज़ो और जमीदारो के सामने अपनी दबंगई से स्वाभिमान के साथ जीता रहा। 17 वर्ष की आयु में आपने सीआरपीएफ को join किया।। सीआरपीएफ में आने का यही एक मकसद रहा कि देश के लिए जो भी संभव हो किया जाए।। आपने कई जगह अपनी सेवाएं दी। श्रीनगर की ठिठुरती ठंड में भी सिर्फ घुटनों तक कपड़े पहन कर ड्यूटी करना अपने आप में ही एक हिम्मत का काम है। आसाम में जब आप अपनी सेवाएं दे रहे थे, उस समय वहां आवागमन बहुत कठिन था। एक पोस्ट से दूसरी पोस्ट पर जाने के लिए कई मील पैदल चलना होता था। ऊंची नीची पहाड़ियों पर चलकर अपनी पोस्ट पर पहुंचने में सात से आठ दिन तक का समय लग जाता था। इतने दुर्गम स्थानों पर कठिन कार्यों को करने में भी एक देशभक्त जवान को तनिक भी संकोच नहीं होता।। कोई भी कार्य उन्हें दुष्कर नहीं लगता। जब आप कच्छ में सेवारत थे, वहां पर समुद्र का पानी असमय ही भर जाता था, ऐसा कई बार होता था। संवाद के लिए एकमात्र साधन वायरलेस ही था। बारिश के समय वह भी निर्जीव हो जाया करता था। एक बार एक बहुत ही महत्व पूर्ण डाक भेजने के लिए आपको चुना गया। आप 22 km तक पानी में पैदल चलकर पहुंचे।।। जब भी लगता कि यह काम कठिन है तब सभी को आपका नाम याद आता।।। आपने कभी अपने उच्च अधिकारियों को निराश नहीं किया। चाहे खेल का मैदान हो, कोई प्रतियोगिता या युद्ध का मैदान,, आपने अपना परचम हर जगह लहराया। कच्छ में ही सेवा करते हुए सरदार पोस्ट पर आपने जो अदम्य साहस दिखाया, वह आज भी सीआरपीएफ के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज़ है। 8 अप्रैल 1965 की रात 3 बजे घनघोर अंधेरे में सरदार पोस्ट पर पाकिस्तानी टुकड़ी ने हमला कर दिया। उस समय मात्र 34 सैनिक पोस्ट पर तैनात थे। पाकिस्तान की 51 बिग्रेड ने अपने लगभग 3500 सैनिकों के साथ रण आफ कच्छ की दो पोस्ट जिसमें एक सरदार पोस्ट भी शामिल थी, पर हमला किया। भारतीय सेना के 19 जवान पाकिस्तानी सेना ने कैद कर लिए। द्वितीय बटालियन के जवानों ने दुश्मन सेना को करीब 12 घंटे तक सीमा पर पांव तक नहीं रखने दिया। यह आपकी ही नेतृत्वशीलता का परिणाम रहा कि पाकिस्तानी टुकड़ी को खदेड़ने में आपकी टीम कामयाब रही। आप अपनी टीम के साथ अगली सुबह तक पूरे साहस और आत्मविश्वास से डटे रहे। 9 अप्रैल का यह दिन हर वर्ष शोर्य दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह आपकी जीत का दिन था, यह देश की जीत का दिन था और सीआरपीएफ के लिए गौरव का दिन बन गया। हर साल शोर्य दिवस पर आपको दिल्ली के गृहमंत्री द्वारा सम्मानित किया जाता रहा। आपकी , दृढ़ निष्ठा, उपलब्धियां और बलिदान आने वाले समय में भी सीआरपीएफ परिवार के अन्य सदस्यों को भी प्रेरित करेगा। झुलसाने वाली गर्मी में भी रेगिस्तानी हवाओं के बीच कच्छ के रण ( गुजरात)में आपने वीरतापूर्वक मोर्चा संभाला। इसी एक जज़्बे के साथ कि आप सभी मिलकर विरोधियों को खदेड़ देंगे। कहते है एक वीर का शोर्य कभी खत्म नहीं होता, वह अमर हो जाता है एक वीर गाथा के रूप में। आप जैसे हर वीर को नमन करती है इस मातृभूमि की मिट्टी, जिन्होंने घर परिवार और सारी सुख सुविधाओं को से मुंह मोड़ कर देशहित को सर्वोपरि माना, जो मर कर भी जी गए पर तिरंगे का मान कम नहीं होने दिया।,इनकी विजय गाथा हमेशा इन्हे अमर रखती हैं।।।। जय हिन्द । जय भारत।