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एग्जिट पोल में मात खाए मीडिया को फिलहाल शांत रहना चाहिए। देश बहुत नाजुक दौर से गुजर रहा है, खडग़े साहब! 240 सीटें जीतने के बाद भी जनादेश मोदी के खिलाफ कैसे?.......... लोकसभा में अब राहुल गांधी को प्रतिपक्ष के नेता की भूमिका निभानी चाहिए।

लोकसभा चुनाव के मद्देनजर मीडिया ने जो एग्जिट पोल प्रसारित किए वे पूरी तरह फेल रहे। इससे मीडिया की विश्वसनीयता भी दांव पर लगी। विपक्षी दलों को भी मीडिया पर आरोप लगाने का मौका मिला। एग्जिट पोल में मात खाने के बाद मीडिया को फिलहाल शांत बैठना चाहिए। मीडिया में वहीं खबरें प्रसारित हो जिसकी पुष्टि हो रही है। सूत्रों के हवाले से खबरों को प्रसारित नहीं करना चाहिए। मीडिया माने या नहीं लेकिन देश इस समय बहुत नाजुक दौर से गुजर रहा है। चुनाव में उन ताकतों की जीत भी हो गई है जो भारत की एकता और अखंडता से खुश नहीं रहते। सनातन धर्म को नष्ट करने की सोच रखने वाले विचारों की भी जीत हुई है। अंदाजा लगाया जा सकता है कि आने वाले दिनों में देश के हालात कैसे होंगे। ऐसे में मीडिया को देशहित में भूमिका निभानी चाहिए। 5 जून को दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आवास पर एनडीए की बैठक हुई। इस बैठक में सहयोगी दलों ने माना कि पिछले दस वर्षों में मोदी के नेतृत्व में देश के हर क्षेत्र में विकास हुआ है, इसलिए अब अगले पांच वर्षों में भी मोदी की कल्याणकारी नीतियों से देश को आगे बढ़ाया जाएगा। बैठक में ऐसी कोई बात नहीं हुई जो एनडीए की मजबूती को कम करती हो। इस बैठक में जेडीयू के नीतीश कुमार, टीडीपी के चंद्रबाबू नायडू से लेकर असम गण परिषद के अतुल बोहरा तक उपस्थित रहे। इसके साथ ही सभी ने नरेंद्र मोदी को फिर से एनडीए का नेता चुना। चूंकि भाजपा के गठबंधन वाले एनडीए को 293 सीटें मिली है, इसलिए नरेंद्र मोदी एक बार फिर देश के प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं, लेकिन इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा कि न्यूज चैनलों और अखबारों में प्रकाशित हुआ कि एनडीए के घटक दल अभी से ही दबाव की राजनीति कर रहे हैं। टीडीपी, जेडीयू की ओर से गृह, वित्त, रेल, रक्षा जैसे मंत्रालय मांगने की बात कही गई है। इतना ही नहीं मीडिया में यहां तक कहा गया कि नरेंद्र मोदी ने पिछले दस वर्षों में जिस तरह सरकार चलाई वैसी इस बार नहीं चलाई जाएगी। यूसीसी, वन नेशन वन इलेक्शन, ओबीसी आरक्षण में विभाजन जैसे मुद्दे पर नरेंद्र मोदी कोई कार्यवाही नहीं कर सकेंगे। यानी मीडिया में अभी से यह कयास लगाया जा रहा है कि मोदी सरकार कमजोर होगी। सवाल उठता है कि ज्वलंत मुद्दों और मंत्रालयों को लेकर आखिर मीडिया को किसने जानकारी दी? क्या जेडीयू के नीतीश कुमार ने मीडिया से कहा कि उन्हें रेल मंत्रालय चाहिए? या फिर टीडीपी के चंद्रबाबू नायडू ने गृह मंत्रालय लेने की बात मीडिया को बताई? जाहिर है कि मीडिया में तथ्य हीन खबरों का प्रसारण हो रहा है। मीडिया को यह समझना चाहिए कि एनडीए की कमान नरेंद्र मोदी जैसे नेता के पास है। भले ही भाजपा बहुमत से 32 सीटें दूर हो, लेकिन नरेंद्र मोदी जानते हैं कि सरकार को मजबूती के साथ कैसे चलाया जा सकता है। 10 निर्दलीय सांसद सीधे मोदी के समर्थन में है। मोदी को पता है कि नीतीश कुमार की रुचि अपने राज्य बिहार और चंद्रबाबू नायडू की रुचि आंध्र प्रदेश में है। इन राज्यों को मदद करने में मोदी कभी कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। मीडिया खुद देखा कि आने वाले दिनों में मोदी सरकार कितनी मजबूती के साथ काम कर रही होगी। जो लोग मोदी को तीसरे कार्यकाल में कमजोर मान रहे हैं, उन्हें मोदी की प्रवृत्ति का अंदाजा नहीं है। सहयोगी दलों की मदद से भी नरेंद्र मोदी देश में एक मजबूत सरकार चलाएंगे। जनादेश मोदी के खिलाफ कैसे?: 5 जून को कांग्रेस के गठबंधन वाले इंडिया की बैठक भी दिल्ली में हुई। इस बैठक के बाद कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े ने कहा कि चुनाव का जनादेश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ है, इसलिए मोदी को तीसरी बार प्रधानमंत्री नहीं बनना चाहिए। सब जानते है कि मोदी को प्रधानमंत्री बनने से रोकने के लिए ही विपक्षी दलों ने राष्ट्रीय स्तर पर रणनीति बनाई थी। लाख कोशिश के बाद भी भी इंडिया एलायंस बहुमत का 272 का आंकड़ा छू नहीं सका। इंडिया एलायंस में शामिल दलों के सांसदों की संख्या 234 है, जबकि अकेले भाजपा की संख्या 240 है। भाजपा को जब 240 सीटें मिली है, तब जनादेश मोदी के खिलाफ कैसे हो सकता है। प्रतिपक्ष के नेता हो राहुल: इंडिया एलायंस में सबसे ज्यादा 100 सीटें कांग्रेस को मिली है। ऐसे में कांग्रेस का कोई सांसद ही लोकसभा में प्रतिपक्ष का नेता बने। कांग्रेस की ओर से प्रतिपक्ष का नेता कौन हो, यह कांग्रेस का आंतरिक मामला है, लेकिन यदि राहुल गांधी प्रतिपक्ष के नेता बनते हैं तो कांग्रेस को फायदा होगा। मल्लिकार्जुन खडग़े भले ही कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष हो, लेकिन कांग्रेस की पहचान राहुल गांधी के चेहरे से ही होतीे है। राहुल ने इस चुनाव में भी जो रणनीति बनाई उसी का परिणाम रहा कि कांग्रेस के सांसदों की संख्या 52 से बढ़कर 100 तक पहुंच गई। लोकसभा में प्रतिपक्ष का नेता बनने से राहुल गांधी को हर विषय पर बोलने का विशेषाधिकार होगा। इसके साथ ही राहुल गांधी को कैबिनेट मंत्री की सुविधा भी मिलेगी।

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