logo

सनातन धर्म में आस्था और श्रद्धा का त्यौहार शीतला सप्तमी रविवार को रात्रि जागरण व सोमवार को विशेष पुजा आराधना के साथ मनाया जायेगा

नीमच हलचल (रिपोर्टर महेंद्र सिंह राठौड़) सिंगोली:- इस बार शीतला सप्तमी का पर्व 1अप्रेल सोमवार चैत्र कृष्ण सप्तमी को आ रहा है।मां शीतला को देवी दुर्गा का स्वरूप माना जाता है और यह पर्व तेज गर्मी के पुर्व शीतलता के लिए और असाध्य बिमारी से बचने के लिए चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को व्रत रखते हुए मां शीतला की पूजा करने का विधान होता है। पारंपरिक रूप से यह व्रत त्योहार आस्था और श्रद्धा विश्वास के साथ महिलाओं द्वारा मनाया जाता है। शीतला सप्तमी के दिन बासी खाने का भोग लगाया जाता है। सनातन धर्म में हर माह कोई न कोई प्रमुख व्रत-त्योहार आता है और हर एक व्रत-त्योहार का विशेष महत्व होता है। इसी प्रकार चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को शीतला सप्तमी का व्रत रखा जाता है। हर वर्ष यह व्रत होली के 7 दिन बाद मनाया जाता है, इस व्रत में मां शीतला की विशेष रूप से पूजा-आराधना की जाती है,इस व्रत में मां शीतला को बासी भोजन का भोग लगाया जाता है,यह व्रत मुख्य रूप से मां अपने बच्चे की लंबी आयु और अच्छी सेहत के लिए शीतला माता से कामना करती हैं। इस व्रत का महत्व और पूजा विधि शीतला सप्तमी तिथि और शुभ मुहूर्त हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को शीतला सप्तमी का व्रत रखा जाता है पंडितो के बताये अनुसार 31मार्च 2024 को रात्रि में रात्रि जागरण के साथ सप्तमी तिथि प्रारंभ हो कर 1अप्रेल को रात 09 बजकर 27 मिनट तक रहेगी ऐसे में उदया तिथि के आधार पर शीतला सप्तमी का व्रत 1अप्रेल को हैं। मां शीतला को देवी दुर्गा का स्वरूप माना जाता है हर साल चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को व्रत रखते हुए मां शीतला की पूजा करने का विधान होता है इस दिन मां को सबसे अलग तरह का भोग अर्पित किया जाता है इस दिन माता शीतला को बासी और ठंडा भोजन का भोग लगाया जाता है ऐसी मान्यता है कि माता शीतला को बासी भोजन का भोग लगाने पर अच्छी सेहत का वरदान मिलता है।कई जगहों पर इस व्रत को बासौड़ा के नाम से भी जाना जाता है।शीतला सप्तमी का व्रत और पूजा- आराधना सबसे ज्यादा मध्य भारत एवं उत्तरपूर्व के राज्यों में बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है,शीतला मां का स्वरूप अत्यंत ही शीतल बताया जाता है और इनका स्वरूप रोगों को हरने वाला है इनका वाहन गधा है इनके हाथों में कलश, सूप, झाड़ू और नीम के पत्ते रहते हैं शीतला सप्तमी को बसोड़ा के नाम से भी प्रचलित है शास्त्रों के अनुसार, इस दिन भोजन पकाने के लिए आग नहीं जलाई जाती बल्कि महिलाएं व्रत के एक दिन पहले ही भोजन बना लेती हैं और बसोड़ा वाले दिन घर के सभी सदस्य इसी बासी भोजन का सेवन करते हैं माना जाता है शीतला माता चेचक रोग, खसरा आदि बीमारियों से बचाती हैं मान्यता है, शीतला मां का पूजन करने से चेचक, खसरा, बड़ी माता, छोटी माता जैसी बीमारियां नहीं होती और अगर हो भी जाए तो उससे जल्द छुटकारा मील जाता है। शीतला सप्तमी पर महिलाएं प्रातः 4बजे से स्नान कर पुजा साम्रगी और जल कलश ले जाकर माता शीतला के मंदिर में पहुंचेगी हर शीतला मंदिर पर महिलाओं की भीड़ समुह के रूप में उमड़ेगी जो पुरे दिन रहेंगी बड़ी आस्था और श्रद्धा के साथ शीतला सप्तमी का पर्व मनाया जायेगा।

Top