(अनिल कुमार बैरागी) आज फिर जावद बंद रहा जावद पूर्णतया बंद रहा गली मोहल्ले बस स्टैंड सदर बाजार चारों तरफ सन्नाटा पसरा रहा ऐसा लग रहा था जिसे लॉकडाउन के समय जो सन्नाटा फासला रहता है उसी प्रकार इक्का-दुक्का लोग आ जा रहे थे पूरे शहर की जो पड़ताल की गई तो में मार्केट धान मंडी पूर्णतया बंद था सराफा बाजार बंद कपड़ा बाजार बंद था अंधेरा बाजार बंद था अठाना दरवाजा खोर दरवाजा चारों तरफ सन्नाटा हों रहा था कहीं पर भी लोग नजर नहीं आ रहे थे पब्लिक नजर नहीं आ रही थी अठाना दरवाजा से लेकर सदर बाजार होते हुए हमने पूरे जावद का पैदल ही रिपोर्टिंग करनी चाहिए जगह-जगह मात्र पुलिस वाले के अलावा हमें कोई दिखाई नहीं दिया नहीं कोई किसी से बात करते हुए नजर आए जब हम बस स्टैंड तक पहुंचे वहां पर पीने का पानी भी नसीब नहीं था लोगों को अब आप बताएं इसमें सूखे पेड़ को जो हरा भरा खुशियों का जो हरा भरा पेड़ था बरगद का पेड़ जिससे जावद में चार चांद लगाते थे जिन लोगों ने उसे हरे बरगद के पेड़ को काटा है उसकी छाया अब किसी को भी नसीब नहीं हो रही है प्रशासन मोन है जनता मोन है कोई भी पहल करने के लिए तैयार नहीं है ना कोई किसी से बात करता है ना कोई किसी सुनता है यह त्यौहार इसी प्रकार चलता रहेगा या कभी यह कटा हुआ वृक्ष वापस हरा भरा होकर खुशियों से शहर के साथ क्या खुशियां लाएगा इस जावेद बंद को कोई राजनीतिक पार्टी कोई संगठन बैंड नहीं करता है 2015 से लगातार इसी प्रकार यह कटा हुआ वृक्ष हरा होकर पुराने गाव को फिर ताजा कर जाता है इस शहर में इस शहर में राजनीति करने तो बहुत आते हैं मगर जनता की हित में कार्य करने वाला काम करने वाला शहर के हित में जन भागीदारी में काम करने वाला कोई नहीं आता है एसपी बदल गए कलेक्टर बदल गए प्रशासन वही और शहर भी वही का वही क्या यह सूखा पेड़ अब टूट बनाकर ऐसे ही रहेगा इसके पास पंछी तो आते जाते हैं फिर चाहे कोई भी राजनीतिक पार्टी हो कोई भी संगठन हो शहर के शांति और अमन चैन की एक राह आसान नजर नहीं आती अनिल कुमार बैरागी