(थैलेसीमिया को लेकर प्रदेश सरकार का ढुलमुल रवैया, नीमच जिले की जनता के साथ हो रहा है खिलवाड़) जावद। विधानसभा के कांग्रेस नेता प्रकाश जैन रांका ने एक बार फिर जनहित के मुद्दे की ओर ध्यान आकर्षित किया है । श्री रांका ने बताया कि एक जनप्रतिनिधि और राजनेता की जिम्मेदारी होती है कि समाज में व्याप्त कुरीतियों व जरूरतमंदों से जुड़े विषयों पर आवाज उठाएं जिससे आम जनता को लाभ प्राप्त हो ओर एक सशक्त समाज का निर्माण हो सके थैलेसीमिया जैसी गंभीर बीमारी को लेकर आमजन में जहां जागरूकता का भाव है तो वही सरकारी महकमा और प्रदेश की सरकार इस ओर ध्यान नहीं दे रही है जहां अन्य राज्यों की सरकारें विशेष अभियान चलाकर इस गंभीर बीमारी की ओर ध्यान दे रही है और अपने-अपने क्षेत्रों को थैलेसीमिया से मुक्त कराने का प्रयास कर रही है वही देखा जाए तो नीमच जिले में थैलेसीमिया के 84 मरीज अब तक सामने है अगर सगन रूप से अभियान चलाएं तो यह आंकड़ा हजार की संख्या तक छू सकता है यहां प्रशासन एवं सरकार की नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि गांव-गांव जागरूकता अभियान चलाएं जिससे नीमच जिला थैलेसीमिया मुक्त हो सके । *जिले में चिक्तिसा सुविधाओं के नाम पर ऊठ के मुंह मे झिरा* श्री रांका ने बताया कि जिला चिकित्सालय नीमच में थैलेसीमिया से ग्रसित 84 बच्चे ब्लड चढ़ाने आते हैं उनके लिए अलग से कोई वार्ड नहीं है । ब्लड चढ़ाने के लिए फिल्टर की व्यवस्था नहीं है बच्चों को प्रदान की जाने वाली दवाई एक फार्मा कम्पनी की देसीरोक्स भी सभी मानकों पर खरी नहीं उतरती हैं । इस दवाई को लेने के बाद बच्चों में कई तरह के साइड इफेक्ट देखने को मिलते हैं जिनमें मुख्यतः बच्चों को गले में जलन और उल्टी होती है । श्री रांका ने आगे बताया कि जल्द ही इस विषय को लेकर में उच्च अधिकारियों से बात करूंगा ताकि नीमच जिले ओर जावद विधानसभा क्षेत्र से आने वाले बच्चों को लाभ प्राप्त हो ओर सुविधाएं मुहैया हो सके । क्या है थैलेसीमिया ..? श्री राका ने बताया कि जब इस विषय को लेकर उन्होंने एक्सपर्ट डॉक्टरो से बात की तो उन्होंने इस बीमारी के बारे में उन्हें जानकारी प्रदान की हे थैलेसीमिया एक अनुवांशिक बीमारी है, जिसमें बच्चे का खून बनना कम हो जाता है। मेजर थैलेसीमिया होने पर 15 से 20 दिन में खून चढ़ाने की आवश्यकता होती है। बार-बार खून चढ़ाने से शरीर में आयरन की मात्रा बढ़ जाती है। इससे किडनी, लीवर हार्ट खराब होने का अंदेशा रहता है। यदि दवा से आयरन की मात्रा कम कर दी जाए इन अंगों को सुरक्षित रखा जा सकता है रोगी की आयु बढ़ाई जा सकती है। इसमें काफी पैसा खर्च होता है। इसके अलावा हड्डी की अस्थी मज्जा जो शरीर में खून बनाती है को बदलकर रोगी का उपचार हो सकता है। लेकिन, इसमें 15 लाख रु तक खर्च आता है जो साधारण व्यक्ति के बूते से बाहर है। थैलेसीमिया एक वंशानुगत रोग है.. अगर माता या पिता किसी एक में या दोनों में थैलेसीमिया के लक्षण हैं तो यह रोग बच्चे में जा सकता है इसलिए बेहतर होता है कि बच्चा प्लान करने से पहले ही अपने जरूरी मेडिकल टेस्ट करा लेने चाहिए। यदि माता-पिता दोनों को ही यह रोग है लेकिन दोनों में माइल्ड (कम घातक) है तो बच्चे को थैलेसीमिया होने की आशंका बहुत अधिक होती है। साथ ही बच्चे में यह रोग गंभीर स्थिति में हो सकता है, जबकि माता-पिता में रोग की गंभीर स्थिति नहीं होती है। माता-पिता दोनों में से किसी एक को यह रोग है और माइल्ड है तो आमतौर पर बच्चों में यह रोग ट्रांसफर नहीं होता है। यदि हो भी जाता है तो बच्चा अपना जीवन लगभग सामान्य तरीके से जी पाता है। कई बार तो उसे जीवनभर पता ही नहीं चलता कि उसके शरीर में कोई दिक्कत भी है। श्री राका ने कहा कि सामाजिक संगठनों को भी अपने दायित्वों का निर्वहन करते हुए इस विषय की ओर भी ध्यान देना चाहिए और सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि जो संगठन इस प्रकार के कार्य कर रहे हैं उन्हें हर जरूरत मुहैया कराए।